सास-ससुर की संपत्ति पर दामाद का इतना हक! हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला Property Rights

By Prerna Gupta

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Property Rights – भारतीय समाज में दामाद को हमेशा से खास सम्मान और मान-सम्मान मिलता आया है। घर में उनका स्वागत बेटे की तरह किया जाता है और कई बार उन्हें परिवार का हिस्सा मानकर साथ ही रखा भी जाता है। लेकिन जब बात कानूनी हक की आती है, तो सामाजिक परंपराएं और भावनाएं कानून के सामने बहुत पीछे रह जाती हैं। खासकर तब, जब सास-ससुर की संपत्ति में दामाद के अधिकार को लेकर सवाल उठता है। क्या दामाद को सास-ससुर की प्रॉपर्टी में हिस्सा मिल सकता है? क्या अगर वो घर में रह रहा है तो उसे निकाला नहीं जा सकता? इन सवालों का जवाब हाल ही में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में दिया है।

भोपाल का मामला जिसने सबका ध्यान खींचा

यह मामला भोपाल निवासी दिलीप मरमठ और उनके ससुर नारायण वर्मा के बीच शुरू हुआ। दिलीप ने दावा किया कि उन्होंने अपने ससुर के मकान के निर्माण में करीब 10 लाख रुपये का योगदान दिया था। उनके पास बैंक स्टेटमेंट भी था जिससे वो यह साबित करना चाहते थे कि उनका इस प्रॉपर्टी में आर्थिक हिस्सा है। शुरू में नारायण वर्मा ने अपनी बेटी और दामाद को साथ रहने की इजाजत दी थी और साथ ही दामाद को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वो अपने बुजुर्ग ससुर की देखभाल करें।

पत्नी की मौत और दूसरी शादी के बाद बदली कहानी

साल 2018 में दिलीप की पत्नी ज्योति की एक हादसे में मौत हो गई। इसके बाद दिलीप ने दूसरी शादी कर ली और यहीं से रिश्तों में खटास आनी शुरू हो गई। दिलीप ने अपने ससुर की देखभाल करना पूरी तरह बंद कर दिया। उन्होंने न खाना देना जारी रखा और न ही रोजमर्रा के खर्च में सहयोग किया। नारायण वर्मा खुद एक रिटायर्ड बुजुर्ग थे और उन्हें अपनी बीमार पत्नी की भी देखभाल करनी थी। ऐसे में दामाद की यह बेरुखी उनके लिए तकलीफदेह बन गई।

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एसडीएम कोर्ट में पहुंचे बुजुर्ग ससुर

थक-हार कर नारायण वर्मा ने ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम 2007’ के तहत एसडीएम कोर्ट में मामला दायर किया। इस कानून के तहत अगर कोई संतान या रिश्तेदार किसी बुजुर्ग की देखभाल नहीं करता तो बुजुर्ग उन्हें अपनी संपत्ति से बेदखल कर सकता है। कोर्ट ने मामले की सुनवाई की और पाया कि दिलीप ने अपने कर्तव्यों का पालन नहीं किया है। कोर्ट ने उन्हें मकान खाली करने का आदेश दे दिया।

कलेक्टर और फिर हाईकोर्ट की शरण में गया दामाद

एसडीएम कोर्ट के फैसले के खिलाफ दिलीप ने कलेक्टर के पास अपील की। उन्होंने फिर वही दलील दी कि उन्होंने घर में पैसे लगाए हैं इसलिए उनका उस पर हक है। लेकिन कलेक्टर ने भी एसडीएम का फैसला बरकरार रखा और कहा कि भले ही दामाद ने पैसा दिया हो, लेकिन जब उसने देखभाल नहीं की, तो उसे रहने का हक नहीं है।

इसके बाद दिलीप मरमठ ने मामला हाईकोर्ट में पहुंचा दिया। हाईकोर्ट ने पूरे केस की बारीकी से समीक्षा की और पाया कि दिलीप द्वारा दिया गया आर्थिक योगदान केवल एक पारिवारिक समझौते का हिस्सा था, न कि संपत्ति के स्वामित्व का प्रमाण। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक प्रॉपर्टी किसी के नाम ट्रांसफर नहीं होती, तब तक सिर्फ पैसा लगाने से किसी को मालिकाना हक नहीं मिल जाता।

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हाईकोर्ट ने सुनाया सख्त लेकिन साफ फैसला

हाईकोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि जब कोई व्यक्ति, चाहे वह दामाद ही क्यों न हो, अपने सास-ससुर की देखभाल नहीं करता, तो उसे संपत्ति से निकाला जा सकता है। अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि नारायण वर्मा को न सिर्फ खुद की बल्कि अपनी बीमार पत्नी की देखभाल भी करनी है और ऐसे में उन्हें अपने घर की जरूरत है। अंततः कोर्ट ने दिलीप की अपील खारिज कर दी और आदेश दिया कि वह एक महीने के अंदर घर खाली करे।

इस फैसले से मिले कई अहम सबक

इस फैसले से यह बात और भी स्पष्ट हो गई है कि केवल किसी संपत्ति में पैसे लगाने से कोई व्यक्ति उसका मालिक नहीं बन जाता, जब तक कि कानूनी रूप से ट्रांसफर न हो। इसके साथ ही, पारिवारिक रिश्तों में केवल अधिकार की बात नहीं होती, जिम्मेदारियों का भी बराबर महत्व होता है। अगर आप अपने बुजुर्ग रिश्तेदारों का सम्मान नहीं करते और उनकी देखभाल नहीं करते, तो आपको उनके घर में रहने का कोई हक नहीं है। यह फैसला न सिर्फ दामादों के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए एक संदेश है कि बुजुर्गों की देखभाल नैतिक ही नहीं, बल्कि कानूनी रूप से भी जरूरी है।

भविष्य के लिए जरूरी सुझाव

अगर किसी परिवार में संपत्ति को लेकर कोई आपसी व्यवस्था है, तो उसे सिर्फ मौखिक न रखकर दस्तावेजी रूप में दर्ज करना जरूरी है। खासकर अगर कोई रिश्तेदार घर में पैसा लगा रहा है, तो यह स्पष्ट किया जाए कि वह सहयोग के रूप में है या हिस्सेदारी के रूप में। बुजुर्गों को भी अपने अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए और ज़रूरत पड़ने पर कानून का सहारा लेने से डरना नहीं चाहिए। यह समाज की भी जिम्मेदारी है कि वह ऐसे मामलों में बुजुर्गों का साथ दे और संवेदनशीलता बनाए रखे।

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Disclaimer

यह लेख सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी कानूनी सलाह नहीं मानी जानी चाहिए। संपत्ति से जुड़े किसी भी विवाद या निर्णय के लिए कृपया किसी योग्य वकील से परामर्श जरूर लें। कानून समय के साथ बदल सकते हैं, इसलिए अद्यतन जानकारी प्राप्त करना जरूरी है।

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